दुनिया भर के हर महाद्वीप पर प्राचीन जीवन के जीवाश्म (fossils) अवशेष खोजे गए हैं। हालाँकि जब इन खजानों को उजागर करने की बात आती है तो सभी क्षेत्र समान रूप से बराबर नहीं होते हैं। कुछ स्थानों में जीवाश्मों को संरक्षित करने और उजागर करने के लिए एकदम सही परिस्थितियाँ हैं जबकि अन्य अतीत के रहस्यों के लिए बहुत कम अनुकूल हैं। पृथ्वी की सतह के नीचे एक छिपी हुई दुनिया है। एक ऐसी दुनिया जहाँ समय स्थिर रहता है और प्राचीन जीवन अनंत काल तक सुरक्षित रहता है। जीवाश्म, बहुत पहले के जीवों और पौधों के निशान और अवशेष हमें लुप्त हो चुके अतीत के बारे में बताते हैं। अवशेष अलग अलग प्रकार के हो सकते है लेकिन प्रत्येक जीवाश्म में एक बात समान है। इसे समय और प्रकृति के माध्यम से एक उल्लेखनीय यात्रा से गुजरना पड़ता है जिसे हम "जीवाश्म" के रूप में जानते हैं।
रेगिस्तान, नदियों, पहाड़ों और बंजर भूमि के ऊबड़-खाबड़ परिदृश्यों में प्रकृति लाखों साल पहले के रहस्यों को उजागर करती है। ये भौगोलिक स्थान जीवाश्म खोजों के लिए एकदम सही हैं। इसका श्रेय कटाव की अथक शक्ति को जाता है। समय के साथ हवा और पानी की ताकतें चट्टान की सतह की परतों को काटती हैं।
पत्थर के भीतर गहरे छिपे जीवाश्म दूर के अतीत के बारे में बताते हैं। मिट्टी और चट्टान की परतों के नीचे लाखों सालों से दबे रहकर जीवाश्म शायद अपने खुलने के पल का धैर्यपूर्वक इंतज़ार भी करते होंगे। इन क्षेत्रों में प्राकृतिक अपक्षय (weathering) अपना धीमा और स्थिर काम करता है। पृथ्वी की सतह धीरे-धीरे घिसती जा रही है जिससे नीचे दबे जीवाश्म के रूप में खजाने (जीवों और पौधों के अवशेष) उजागर हो रहे हैं।
बहुत पहले प्राचीन नदियों, दलदलों और अंतर्देशीय समुद्रों द्वारा आकार लिए गए एक संसार में पानी के किनारे जीवन पनपता था। इन जलमार्गों में छोटे-छोटे चट्टानी कणों-तलछटों की अंतहीन धाराएँ बहती थीं जो किनारों और तल पर जम जाती थीं। इसके बाद परत दर परत बनती जाती थीं। जब जीव मरते थे तो उनमें से कुछ धीरे-धीरे इन तलछटों में (sedimentary rocks) दब जाते थे। धीरे धीरे पानी कम होता गया। नरम मिट्टी और रेत पत्थर में सख्त हो गई जिससे इन प्राचीन जीवों के अवशेष अंदर ही फंस गए। ये प्राकृतिक समय कैप्सूल बन गए जिन्हें हम अब तलछटी चट्टानें (sedimentary rocks) कहते हैं। बलुआ पत्थर, मिट्टी के पत्थर, चूना पत्थर और लौह पत्थर की परतें एक बीते युग के जीवाश्मों को समेटे हुए हैं। जब इन जीवाश्मों को बाहर निकालेंगे तो एक बहुत पुरानी दुनिया के रहस्यों को उजागर किया जा सकेगा।
राष्ट्रीय जीवाश्म लकड़ी पार्क, तिरुवक्कराई (National Fossil Wood Park, Tiruvakkarai)
![]() |
कुड्डालोर बलुआ पत्थर में संरक्षित मायो-प्लियोसीन युग के 20 मिलियन वर्ष पुराने लकड़ी के जीवाश्म (Image: Ranjith Kumar Inbasekaran, CC BY-SA 3.0 via Wikimedia Commons |
राष्ट्रीय जीवाश्म लकड़ी पार्क, तिरुवक्करई तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में स्थित एक राष्ट्रीय भू-विरासत स्मारक है। इसका रखरखाव भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है। इस पार्क की स्थापना 1940 में हुई थी। 247 एकड़ में फैले विशाल पार्क में एक भूली हुई दुनिया के अवशेष बिखरे पड़े हैं जो समय के साथ जम गए हैं। ये पेट्रीफाइड वुड जीवाश्म हैं जिनमें से कुछ लगभग 20 मिलियन वर्ष पुराने हैं। ये भूमि की ऊबड़-खाबड़ सुंदरता के बीच छिपे हुए हैं। नौ परिक्षेत्रों में विभाजित यह पार्क अपने प्राचीन रहस्यों को छिपाए हुए है जिसका केवल एक छोटा सा भाग जनता के लिए खुला है। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्थान (GSI) के विशेषज्ञों का मानना है कि लाखों साल पहले हुई ये असाधारण घटनाएँ पेड़ों और पौधों को पूरे पार्क में बिखरे जीवाश्म लकड़ी में बदलने के लिए जिम्मेदार थीं।
![]() |
मेसेंब्रियोक्सिलॉन श्मिडियानम (जिम्नोस्पर्म) और प्यूस श्मिडियानम (एंजियोस्पर्म) की जीवाश्म लकड़ी (Image: Prabhupuducherry, CC BY-SA 4.0) |
पार्क की ज़मीन एक प्राचीन दुनिया के बारे में बताती है तथा वहां पर लगभग 200 जीवाश्म पेड़ हैं। ये विशाल पेड़ जिनमें से कुछ की लंबाई 3 से 15 मीटर और चौड़ाई 5 मीटर तक है पार्क के मैदान में बिखरे हुए और आंशिक रूप से दबे हुए हैं। वर्षों से पेड़ों ने अपनी शाखाएँ और पत्तियाँ खो दी हैं तथा केवल उनके मज़बूत तने बचे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि पेड़ वहाँ नहीं उगे जहाँ वे पाए गए थे। इसके बजाय वे संभवतः प्रकृति की किसी शक्ति द्वारा अपने मूल घर से बह गए थे या पत्थर बनने से बहुत पहले ही उस स्थान पर पहुँच गए थे। 1781 में यूरोपीय प्रकृतिवादी एम. सोनेरेट ने इन उल्लेखनीय जीवाश्मों का पहला विस्तृत विवरण प्रदान किया जिससे दुनिया को अतीत के बारे में पता चला।
इण्ड्रोडा डायनासोर और जीवाश्म पार्क, गुजरात (Indroda Dinosaur and Fossil Park, Gujarat)
![]() |
इंड्रोडा डायनासोर और जीवाश्म पार्क, गांधीनगर |
भारत के गुजरात के गांधीनगर में एक अद्भुत देखने वाली जगह है- इंद्रोदा डायनासोर और जीवाश्म पार्क। यह पार्क 1970 में खोला गया था। यह मानव निर्मित पार्क अपनी सीमाओं के भीतर प्राचीन जीवों के जीवाश्म अवशेष और डायनासोर के अंडों को संरक्षित रखता है। हालाँकि यह पार्क वह मूल जगह नहीं है जहाँ कभी डायनासोर घूमते थे लेकिन यह प्रागैतिहासिक चमत्कारों का खजाना है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा स्थापित यह पार्क देश की समृद्ध जीवाश्म विरासत का प्रमाण है। इस पार्क में प्रदर्शन पर रखे गए डायनासोरों में टायरानोसॉरस रेक्स, मेगालोसॉरस, टाइटेनोसॉरस, बारापासॉरस, ब्रैकियोसॉरस, अंटार्कटोसॉरस, स्टेगोसॉरस और इगुआनोडोन शामिल हैं। यह वास्तव में भारत का एकमात्र डायनासोर संग्रहालय है जो दुनिया भर से उत्सुक आगंतुकों को आकर्षित करता है।
![]() |
डायनासोर के अंडे का जीवाश्म (Image: Harshit khunt18, CC BY-SA 4.0 , via Wikimedia Commons) |
कच्छ बेसिन की विशाल और प्राचीन भूमि जो इतिहास से समृद्ध है वह अपने सबसे पुराने रहस्यों को उजागर करती है। सतह के नीचे पैचम संरचना के भीतर डायनासोर की हड्डियों के अभिलेख खोजे गए थे जो मध्य जुरासिक काल के थे। जैसे-जैसे वर्ष बीतते गए और अन्वेषण जारी रहा तो इस क्षेत्र के ऊपरी क्रेटेशियस संरचनाओं में और भी अधिक अविश्वसनीय खोजें की गईं। इनमें से कुछ जीवाश्म 66 मिलियन वर्ष पुराने हैं। इन खोजों में विशाल अंडे पाए गए जिनका आकार अलग-अलग था। कुछ तोप के गोले जितने बड़े थे।
डायनासोर प्रांतीय पार्क, कनाडा (Dinosaur Provincial Park, Canada)
![]() |
डायनासोर प्रांतीय पार्क, कनाडा (Image:Natulive Canada, CC BY-SA 4.0) |
अल्बर्टा, कनाडा के बीहड़ बंजर इलाकों में बसा एक ऐसा स्थान है जहाँ समय थम जाता है वह है डायनासोर प्रांतीय पार्क। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है। इसमें डायनासोर के युग के कुछ सबसे महत्वपूर्ण जीवाश्म नमूने हैं जो 75 से 77 मिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आई दुनिया की एक अद्वितीय झलक पेश करते हैं। इस पार्क को जो चीज अलग बनाती है वह है इसके जीवाश्मों की प्रचुरता और विविधता। आज तक जीवाश्म विज्ञानियों ने 44 से अधिक प्रजातियों, 34 पीढ़ी और डायनासोर के 10 परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले जीवाश्मों को खोजा है। यह एक ऐसा संग्रह जो दुनिया में कहीं और बेजोड़ है।
इसके वैज्ञानिक महत्व से परे पार्क की सुंदरता असाधारण से कम नहीं है। इसके नदी तटीय क्षेत्र जीवन से भरे हुए हैं जो बैडलैंड्स की स्पष्ट अलौकिक संरचनाओं के विपरीत हैं। आगंतुकों के लिए डायनासोर प्रांतीय पार्क इतिहास के माध्यम से एक यात्रा से कहीं अधिक है।
घुघुआ जीवाश्म पार्क (Ghughua Fossil Park)
![]() |
घुघुवा जीवाश्म उद्यान (Image: NJneeraj, CC BY-SA 4.0) |
मध्य प्रदेश के शहर शाहपुरा के पास एक छिपा हुआ रत्न है जो प्राचीन अतीत को वर्तमान से जोड़ता है: घुघुआ जीवाश्म पार्क (Ghughua Fossil Park)। यह असाधारण जगह जो अब एक राष्ट्रीय उद्यान है। लाखों साल पहले अस्तित्व में रहे एक संसार के अवशेष रखती है। इसकी सीमाओं के भीतर शोधकर्ताओं ने 18 अलग-अलग परिवारों के 31 जेनेरा से संबंधित पौधों के जीवाश्मों की पहचान की है जो प्रागैतिहासिक जीवन की एक ज्वलंत तस्वीर पेश करते हैं।
इस पार्क की कहानी 1970 के दशक में मंडला जिले के एक सांख्यिकी अधिकारी डॉ. धर्मेंद्र प्रसाद के अथक प्रयासों की बदौलत शुरू हुई। इतिहास और प्रकृति के प्रति अदम्य जिज्ञासा से प्रेरित होकर डॉ. प्रसाद इस उल्लेखनीय स्थल को खोजा था। उनके काम ने प्राचीन पौधे, पत्ती, फल, बीज और शंख के जीवाश्मों का खजाना खोजा जिनमे से कुछ तो आश्चर्यजनक रूप से 65 मिलियन साल पुराने हैं। इनमें से सबसे खास हैं ताड़ (palm) के जीवाश्म जो इस क्षेत्र में कभी पनपने वाले हरे-भरे उष्णकटिबंधीय वातावरण का प्रमाण हैं।
इसके विशाल वैज्ञानिक और सांस्कृतिक मूल्य को पहचानते हुए सरकार ने 1983 में घुघुआ जीवाश्म पार्क को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया था।
सलखन जीवाश्म पार्क (Salkhan Fossils Park)
उत्तर प्रदेश में स्थित सलखन जीवाश्म पार्क को सोनभद्र जीवाश्म पार्क के नाम से भी जाना जाता है। 25 हेक्टेयर से ज़्यादा क्षेत्र में फैला यह जीवाश्म पार्क लगभग 1.4 अरब साल पहले मौजूद जीवन की झलक पेश करता है।
यहाँ संरक्षित जीवाश्म ग्रह पर सबसे पुराने जीवाश्मों में से हैं जिनमें मुख्य रूप से शैवाल (algae) और स्ट्रोमेटोलाइट्स (stromatolites) शामिल हैं। ये स्ट्रोमेटोलाइट्स जो कभी प्राचीन समुद्रों में पनपते थे अब पृथ्वी के आदिम इतिहास के मूक गवाह के रूप में खड़े हैं। ये चट्टानी परिदृश्य में उकेरे गए हैं।
कैमूर वन्यजीव अभयारण्य के नज़दीक स्थित यह पार्क भूवैज्ञानिक और प्राकृतिक सुंदरता का एक अनूठा संगम बनाता है। इस असाधारण स्थल पर आने वाले आगंतुक उस समय के अवशेषों को देखकर आश्चर्यचकित हो सकते हैं।
जुरासिक तट, यूनाइटेड किंगडम (The Jurassic Coast, United Kingdom)
![]() |
जुरासिक तट, यूनाइटेड किंगडम (Image: Balon Greyjoy CC0, WC) |
इंग्लैंड के दक्षिणी तटों पर फैला जुरासिक तट एक प्राकृतिक आश्चर्य है और पृथ्वी के प्राचीन इतिहास का प्रवेश द्वार है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित यह लुभावनी तटरेखा 95 मील तक फैली हुई है जो डेवन और डोरसेट की काउंटियों से होकर गुजरती है। इसकी ऊँची तलछटी चट्टानें (sedimentary cliffs) किसी भूवैज्ञानिक पुस्तक के पन्नों की तरह हैं जो पृथ्वी के असाधारण 185 मिलियन वर्षों के इतिहास का वर्णन करती हैं।
यह तटरेखा जीवाश्मों का खजाना है जिनमें से कई प्रारंभिक मेसोज़ोइक युग के हैं। इसके ऊबड़-खाबड़ इलाके में प्रागैतिहासिक जीवन के अवशेष बिखरे हुए हैं: जटिल अम्मोनाइट, झिलमिलाती जीवाश्म मछलियाँ, प्राचीन समुद्री सरीसृप और यहाँ तक कि डायनासोर के निशान भी।