अंकिया नट की रचना 15वीं–16वीं शताब्दी में शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव ने की। इन नाटकों के माध्यम से उन्होंने कृष्ण-भक्ति पर आधारित एकेश्वरवाद, नैतिक मूल्यों और सामाजिक समानता का संदेश जन-जन तक पहुँचाया। अंकिया नट में मुख्य कथाएँ भगवान कृष्ण के जीवन, उनके लीला-परक प्रसंगों और पुराणों की घटनाओं पर आधारित होती हैं।
अंकिया नट की भाषा ब्रजावली होती है जो असमिया, मैथिली और ब्रजभाषा का मिश्रित रूप है। यह भाषा दर्शकों के लिए सरल, मधुर और सहज भावप्रवाह उत्पन्न करती है। प्रस्तुति के समय ‘सुत्रधार’ सबसे महत्वपूर्ण पात्र होता है जो कथा का परिचय देता है, पात्रों को मंच पर लाता है और नाटक की गति को नियंत्रित करता है।
