भारतीय शास्त्रीय नृत्य तकनीक में ‘रस’ और ‘भाव’ की उत्पत्ति : भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का अमूल्य योगदान

भारतीय शास्त्रीय नृत्य तकनीक में ‘रस’ और ‘भाव’ की उत्पत्ति : भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का अमूल्य योगदान
भारतीय शास्त्रीय नृत्य की समृद्ध परंपरा विश्वभर में अपनी अद्वितीय अभिव्यक्ति, गहन भाव-प्रकटीकरण और आध्यात्मिक गहराई के लिए प्रसिद्ध है। इन नृत्य परंपराओं की नींव जिन सिद्धांतों पर टिकी है उनमें ‘रस’ और ‘भाव’ सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं। भारतीय नाट्यकला के इन दोनों तत्वों का विस्तारपूर्वक वर्णन भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में मिलता है जिसे भारतीय नृत्य, संगीत और रंगमंच कला का प्राचीनतम और सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र लगभग 2000 वर्ष पुराना ग्रंथ है जिसकी 36 से अधिक अध्यायों में नाट्य-कला के हर पहलू—संगीत, अभिनय, वेशभूषा, मंच-सज्जा, नृत्य, अभिव्यक्ति और सौंदर्यशास्त्र—का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का वह स्तंभ है जिसने आज तक कला परंपराओं को दिशा प्रदान की है। भाव और रस की अवधारणा भारतीय शास्त्रीय नृत्य में किसी भी प्रस्तुति को जीवंत और प्रभावशाली बनाने के लिए दो मुख्य तत्व आवश्यक होते हैं - भाव (Emotion) और रस (Sentiment / Aesthetic Experience)। भाव (Bhava) भाव कलाकार की वह आंतरिक अनुभूति है जो चेहरे क…