भरतमुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र लगभग 2000 वर्ष पुराना ग्रंथ है जिसकी 36 से अधिक अध्यायों में नाट्य-कला के हर पहलू—संगीत, अभिनय, वेशभूषा, मंच-सज्जा, नृत्य, अभिव्यक्ति और सौंदर्यशास्त्र—का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का वह स्तंभ है जिसने आज तक कला परंपराओं को दिशा प्रदान की है।
भाव और रस की अवधारणा
भारतीय शास्त्रीय नृत्य में किसी भी प्रस्तुति को जीवंत और प्रभावशाली बनाने के लिए दो मुख्य तत्व आवश्यक होते हैं - भाव (Emotion) और रस (Sentiment / Aesthetic Experience)।
भाव (Bhava)
भाव कलाकार की वह आंतरिक अनुभूति है जो चेहरे की अभिव्यक्तियों, नेत्र-चालन, भंगिमाओं और मुद्राओं के माध्यम से व्यक्त होती है।
भरतमुनि ने भावों को तीन श्रेणियों में बाँटा है –
- स्थायी भाव (Permanent Emotions)
- विभाव (Determinants)
- अनुभाव (Consequents)
रस (Rasa)
रस वह अनुभूति है जो कलाकार से निकलकर दर्शक के मन में उत्पन्न होती है।
भरतमुनि ने आठ प्रमुख रसों का वर्णन किया है—
- शृंगार
- हास्य
- करुण
- रौद्र
- वीर
- भयानक
- बीभत्स
- अद्भुत
बाद में एक और रस -शांत भी जोड़ा गया जो आध्यात्मिक संतुलन का प्रतीक है।
भरतमुनि के अनुसार, “विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के सम्मिलन से रस की उत्पत्ति होती है।”
यही सूत्र आज भी सभी शास्त्रीय नृत्य परंपराओं का मूल है।
शास्त्रीय नृत्यों में रस-भाव का महत्व
भारत के सभी प्रमुख शास्त्रीय नृत्य रूप—भरतनाट्यम, कथक, ओडिशी, मणिपुरी, कुचिपुड़ी, कथकली, मोहिनीअट्टम नाट्यशास्त्र में उल्लिखित अभिनय सिद्धांतों से गहराई से प्रभावित हैं।
भरतनाट्यम में ‘अभिनय-दर्पण’ और ‘नाट्यशास्त्र’ के अभिनय-चतुर्विध—आंगिक, वाचिक, आहार्य और सात्विक—का अनुपालन होता है।
- कथक में मुख और नेत्रों की अभिव्यक्ति द्वारा रस-भाव का अद्भुत अभ्यास दिखता है।
- कथकली में अतिरंजित चेहरे के भाव, रंग और हस्त-मुद्राएँ रस की पराकाष्ठा प्रस्तुत करती हैं।
- ओडिशी में त्रिभंगी और स्थायी भावों की प्रस्तुति नाट्यशास्त्र की सौंदर्य परंपरा को दर्शाती है।
इन सभी नृत्य शैलियों का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि दर्शकों में भाव-जागरण और रसानुभूति उत्पन्न करना है।
नाट्यशास्त्र ने क्यों दिया रस-भाव को महत्व?
भारतमुनि ने नाट्यकला को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन का दर्पण माना।
उनके अनुसार—
- कला मानव अनुभवों का प्रतिबिंब है।
- नृत्य और नाटक के माध्यम से मानव भावनाओं का संतुलित प्रस्तुतीकरण होता है।
- रस-भाव दर्शक के भीतर आत्मअनुभूति और आध्यात्मिकता जगाते हैं।
