लावणी, पोवाड़ा, कोली, वाघ्या मुरली और धनगारी गाजा कहाँ के लोकनृत्य है?

लावणी, पोवाड़ा, कोली, वाघ्या मुरली और धनगारी गाजा कहाँ के लोकनृत्य है?
लावणी, पोवाड़ा, कोली, वाघ्या मुरली और धनगारी गाजा महाराष्ट्र के लोकनृत्य है। लावणी लावणी महाराष्ट्र की अत्यंत लोकप्रिय लोकनृत्य शैली है। यह तेज लय, भावपूर्ण गायन और सशक्त अभिनय के अनोखे संगम के लिए जानी जाती है। यह नृत्य प्रायः ढोलकी की थाप पर प्रस्तुत किया जाता है और मराठी लोक रंगमंच तथा तमाशा परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। लावणी की शुरुआत लगभग सोलहवीं शताब्दी के आसपास मानी जाती है। “लावणी” शब्द को मराठी के “लावण्य” या “लवण” से जोड़ा जाता है जिसका आशय सौंदर्य और आकर्षण से है जो इस नृत्य की मूल पहचान है। लावणी में प्रायः महिला कलाकार नौ-गज (नौवारी) साड़ी विशेष ढंग से पहनती हैं। पोवाड़ा पोवाड़ा नृत्य महाराष्ट्र की समृद्ध लोकपरंपरा का एक जीवंत और ऊर्जावान रूप है जो विशेष रूप से मराठा इतिहास, वीर गाथाओं और युद्धकथा­ओं से प्रेरित माना जाता है।  यह नृत्य छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठा साम्राज्य के योद्धाओं की बहादुरी, त्याग और गौरव को जन-जन तक पहुँचाने का सशक्त माध्यम रहा है।  पोवाड़ा केवल एक नृत्य ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के गौरवशाली अतीत की भावनाओं को लोकधुनों और जोशीली प्रस्तुति के माध्यम से अभि…