लावणी : ताल, भाव और शृंगार का अद्भुत संगम
लावणी महाराष्ट्र का सबसे लोकप्रिय लोकनृत्य है, जो मुख्यतः ढोलकी की तीव्र ताल पर प्रस्तुत किया जाता है। नृत्यांगनाएँ चमकदार नौवारी साड़ी, गहने और विशिष्ट ‘नथ’ पहनकर मोहक अभिव्यक्तियों के साथ नृत्य करती हैं। लावणी के गीतों में समाज, प्रेम, व्यंग्य और जीवन के विविध पक्षों का भावपूर्ण चित्रण मिलता है। यह नृत्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मराठी सांस्कृतिक सौंदर्य और नारी-अभिव्यक्ति का प्रतीक है।
पोवाड़ा : वीरता और इतिहास का गंधर्वगान
पोवाड़ा महाराष्ट्र की शौर्य परंपरा से जुड़ा नृत्य-गायन है। इसमें कलाकार युद्धगाथाएँ, वीरों के साहस और ऐतिहासिक घटनाओं का नाटकीय वर्णन प्रस्तुत करते हैं। शिवाजी महाराज के पराक्रम और मराठा साम्राज्य की गौरवगाथाओं को पोवाड़ा ने पीढ़ियों तक जीवित रखा है। ऊँचे स्वर, तेज़ ताल और जोशीले हावभाव इसकी विशेषता हैं।
कोली नृत्य : समुद्री जीवन की झलक
कोली नृत्य महाराष्ट्र के कोली मछुआरों के जीवन, श्रम और उत्सवों का प्रतीक है। इसमें पुरुष और महिलाएँ समूह में रस्सानुमा कतारें बनाकर नृत्य करते हैं। हाथों की गति, नाव खेने की मुद्राएँ और समुद्री लहरों जैसा तालबद्ध झूला इस नृत्य को अत्यंत आकर्षक बनाता है। यह नृत्य कोकण तटवर्ती संस्कृति की आत्मा है।
वाघ्या–मुरली : भक्ति और परंपरा का पवित्र रूप
वाघ्या-मुरली नृत्य महाराष्ट्र की संत परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है, विशेषकर भगवान खंडोबा की आराधना से। वाघ्या पुरुष कलाकार और मुरली महिला कलाकार के रूप में कथा, भक्ति और नृत्य का अनूठा संगम प्रस्तुत करते हैं। यह नृत्य लोकभक्ति, आस्था और ग्रामीण जीवन की सरलता का प्रतीक है।
धनगारी गाजा : पर्वतीय जीवन की उमंग
धनगारी गाजा नृत्य डांग और पश्चिमी महाराष्ट्र के चरवाहा समुदाय—धनगरों—द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। सफेद धोती-कुर्ता, रंग-बिरंगे पगड़े और ढोल जैसी पारंपरिक वाद्य ध्वनियों के साथ यह नृत्य उत्साह से भर देता है। घेरे में घूमते नर्तक और एकसाथ उठते–गिरते कदम समुदाय के सामूहिक जीवन और एकजुटता को दर्शाते हैं।
